केदारनाथ में हुए हृदयविदारक हेलीकॉप्टर हादसे में सात श्रद्धालुओं की जान चली गई। इस घटना ने उत्तराखंड सरकार की व्यवस्थाओं और हेलीकॉप्टर सेवाओं के संचालन की पोल खोल कर रख दी है। हैरानी की बात यह है कि इस त्रासदी के बाद मुख्यमंत्री पुष्कर सिंह धामी जी यह कह रहे हैं कि अब जाकर एक SOP तैयार करने के लिए समिति गठित की गई है।
जब राज्य में वर्षों से बड़े पैमाने पर हेलीकॉप्टर सेवाएं संचालित हो रही हैं, चारधाम यात्रा में प्रतिवर्ष लाखों श्रद्धालु आ-जा रहे हैं, तो यह SOP पहले क्यों नहीं बनी?
बिना किसी मानक प्रक्रिया के लोगों की जान जोखिम में डालकर हवाई सेवाएं ऑपरेट करना क्या सीधा आपराधिक कृत्य नहीं है?
इसी प्रकार, मुख्यमंत्री जी की “सिंगल सेंट्रल कमांड” की अब की गई घोषणा यह सिद्ध करती है कि अब तक संचालन बेतरतीब, असंगठित और गैर-जिम्मेदाराना तरीके से किया जा रहा था।
इसके साथ ही सामने आया है कि कुछ हवाई कंपनियां दुर्गम पर्वतीय क्षेत्रों में पायलट्स को ट्रायल टेक ऑफ और लैंडिंग के बिना उड़ान भरने भेज रही हैं, जो यात्रियों की जान से सीधा खिलवाड़ है।
क्या सरकार को यह सब दिखाई नहीं देता था या जानबूझकर नज़रअंदाज़ किया गया?
हद तो तब हो गई जब भाजपा प्रदेश प्रभारी दुष्यंत गौतम ने मीडिया के सवाल पर तंज कसते हुए कहा – “अगर आपके पास दुर्घटनाएं रोकने की योजना है तो आप हेलीकॉप्टर उड़ाइए।”
यह न सिर्फ एक असंवेदनशील और अहंकारी बयान है, बल्कि दुर्घटना में मारे गए लोगों और उनके परिजनों के जख्मों पर नमक छिड़कने जैसा है।
क्या अब पत्रकारों और जनता को भाजपा नेता सरकार भी चलाने और हेलीकॉप्टर भी उड़ाने को कहेंगे?
कांग्रेस पार्टी की स्पष्ट माँगें:
मुख्यमंत्री यह स्पष्ट करें कि SOP अब तक क्यों नहीं बनी और इस लापरवाही के लिए जिम्मेदारी तय की जाए।
पांच बजे सुबह हेलीकॉप्टर उड़ान की अनुमति किसने दी, इसकी न्यायिक जांच हो।
हेलीकॉप्टर संचालन से पहले पायलट्स के पर्वतीय ट्रायल अनिवार्य किए जाएं।
UCADA को एक प्रभावी, तकनीकी रूप से सक्षम, स्वतंत्र निगरानी संस्था के रूप में पुनर्गठित किया जाए।
भाजपा प्रदेश प्रभारी दुष्यंत गौतम को उनके शर्मनाक बयान पर पद से हटाया जाए और उनसे सार्वजनिक माफी मंगवाई जाए।
सभी मृतकों के परिजनों को ₹1 करोड़ की आर्थिक सहायता दी जाए।
उत्तराखंड की जनता भाजपा सरकार की इन घातक विफलताओं को भूलेगी नहीं।
यह हादसा कोई प्राकृतिक आपदा नहीं था, यह नीतिगत, व्यवस्थागत और राजनीतिक लापरवाही का परिणाम है।