प्रेस विज्ञप्ति
*बस्तीवासियों के लिए कानून लाने के मांग के साथ गैर कानूनी ध्वस्तीकरण अभियान पर शहरी विकास मन्त्री से भेंटकर हस्तक्षेप की मांग की ।
देहरादून 7 जून 024
आज देहरादून में हो रहा लोगों को बेघर करने का गैर कानूनी अभियान और बस्ती में रहने वाले लोगों के लिए कानून लाने के मांग को लेकर आज शहरी विकास मंत्री प्रेमचंद अग्रवाल से राजनैतिक एवं सामाजिक संगठनों की ओर से CPI(M), कांग्रेस, समाजवादी पार्टी, CITU, चेतना आंदोलन और INTUC के प्रतिनिधि मंडल से मुलाकात की। प्रतिनिधि मंडल ने शहरी विकास मंत्री से निवेदन किया कि ध्वस्तीकरण अभियान कानून के अनुसार नहीं चल रहा है और जिस दंग से अनाधिकृत अधिकारियों द्वारा नाजायज और मनमानी तरीकों से कार्यवाही की जा रही है, उस पर तुरन्त रोक लगाया जाए। उन्होंने यह भी मांग उठाया कि 2018 का कानून के प्रावधानों के अनुसार सरकार को बस्तियों का नियमितीकरण और पुनर्वास करना था, लेकिन सरकार ने इस काम को किया नहीं, जिसकी वजह से ऐसी स्थिति बन गई। तो इसलिए तुरंत अध्यादेश लाने की जरूरत है ताकि बिना पुनर्वास कर किसी को बेघर न किया जाए। दोनों बिंदुओं पर मंत्री ने आश्वासन दिया कि सकारात्मक कदम उठाया जाएगा और ध्वस्तिकरण अभियान पर कदम उठाया जायेगा ताकि अभियान कानून के अनुसार ही चले।
प्रतिनिधि मंडल में समाजवादी पार्टी के राष्ट्रीय सचिव डाक्टर एस एन सचान, कांग्रेस के प्रदेश प्रवक्ता शीशपाल सिंह विष्ट, सीआईटीयू के प्रान्तीय सचिव लेखराज, सिपिआई देहरादून के सचिव अनन्त आकाश, चेतना आंदोलन के शंकर गोपाल और इन्टक के जिला अध्यक्ष अनिल कुमार शामिल रहे। मन्त्री जी ने आश्वासन दिया कि वे कानून एवं आधार को मद्देनजर रखते हुये प्रमुख सचिव शहरी आवास एवं विकास को कहेंगे ।
पिछले एक महीने से भी अधिक समय से बस्तियों के मुद्दे पर चेतना आन्दोलन , सीआईटीयू ,एटक ,इन्टक ,सीपी एम,सपा ,एस एफ आई ,महिला समिति ,महिला मंच ,आयूपी आदि संगठनों एवं राजनीतिक दल आन्दोलित हैं ।
ज्ञापन जो मन्त्री जी को दिया :-
सेवा में
माननीय श्री प्रेंमचन्द अग्रवाल जी
शहरी विकास मन्त्री
उत्तराखंड सरकार
बिषय :- बस्तियों को उजाड़ने से रोकने तथा किसी को बेघर न किया जाये और सभी बस्तियों के नियमितीकरण या पुनर्वास के लिये सरकार तत्काल कानून लाये ।
मान्यवर ,
जन संगठनों एवं राजनीतिक दलों द्वारा उपरोक्त सन्दर्भ में पिछले काफी दिनों से आपसे समय देने का अनुरोध किया किन्तु समय न मिलने के कारण आज आपके निवास पर प्रभावितों की अति आवश्यक समस्याओं एवं बस्तियों के नियमतीकरण के लिये तत्काल कानून लाने के लिए प्रदर्शन के माध्यम से आपको ज्ञापन देना पड़ रहा है ताकि सरकार अपने वादे के अनुसार कार्यवाही कर सके ।
मान्यवर ,हाल में देहरादून में प्रशासन /नगरनिगम /एमडीडीए अतिक्रमण हटाने के नाम पर एक ध्वस्तीकरण अभियान चला रहा है। इस अभियान में कानून के प्रावधानों और संविधान के मूल्यों का घोर उल्लंघन हो रहा है। इस संदर्भ में हम आपके संज्ञान में कुछ बिंदुओं को लाना चाह रहे हैं :–
(1) मज़दूरों को न कोई कोठी मिलने वाला है और न ही कोई फ्लैट। 2016 में ही बस्तियों का नियमितीकरण और पुनर्वास के लिए कानून बना था। 2022 तक हर परिवार को घर मिलेगा, यह प्रधानमंत्री जी का आश्वासन था, और 2021 तक सारे बस्तियों का नियमितीकरण या पुनर्वास होगा, यह उत्तराखंड सरकार का क़ानूनी वादा था। दोनों पर बेहद कम काम हुआ है जिसकी वजह से यह स्थिति आज बनी है। तो इस स्थिति के लिए सरकार पूरी तरह से ज़िम्मेदार है।
(2) बड़ा जन आंदोलन होने के बाद 2018 में अध्यादेश ला कर सरकार ने अध्यादेश में ही धारा लिख दिया कि तीन साल के अंदर बस्तियों का नियमितीकरण या पुनर्वास होगा। वह कानून 2024 में खत्तम होने वाला है। लेकिन आज तक किसी भी बस्ती में मालिकाना हक़ नहीं मिला है। वह कानून खत्म होने के बाद किसी भी बस्ती को उजाड़ा जा सकता है चाहे वे कभी भी बसे।
(3) बेदखली के लिए क़ानूनी प्रक्रिया है, लेकिन वर्त्तमान अभियान में कानून को ताक पर रख कर मनमानी तरीकों से अनाधिकृत रुप सेअधिकारी लोगों को बेदखल कर रहे हैं। यह क़ानूनी अपराध है।
(4) देहरादून की नदियों एवं नालियों में होटल, रिसोर्ट, रेस्टोरेंट और अनेक अन्य निजी संस्थानों द्वारा और सरकारी विभागों द्वारा भी अतिक्रमण हुए हैं। हरित प्राधिकरण के आदेश में कोई ज़िक्र नहीं है कि कार्यवाही सिर्फ मज़दूर बस्तियों के खिलाफ करना है, लेकिन किसी भी अन्य अतिक्रमणकारी को नोटिस तक नहीं गया है। इसलिए यह अभियान न केवल गैर क़ानूनी है बल्कि भेदभावपूर्ण भी है।
सरकार की लापरवाही की वजह से लोग बेघर हो जाये, इससे ज्यादा कोई जन विरोधी नीति नहीं हो सकती है। लेकिन बार बार सरकार कोर्ट के आदेशों का बहाना बना कर लोगों को उजाड़ने की कोशिश कर रही है। आपकी सरकार आने के बाद यह तीसरी बार हो रही है।
अतः इसलिए आपसे हमारा निवेदन है कि इस गैर क़ानूनी अभियान पर तुरंत रोक लगाया जाये और सरकार अध्यादेश द्वारा तत्काल कानून बना दे कि बिना पुनर्वास किसी को बेघर नहीं किया जायेगा। अपने ही वादों के अनुसार सरकार युद्धस्तर पर नियमितीकरण की प्रक्रिया को शुरू कर दे और सभी परिवारों एवं मज़दूरों के लिए किफायती घरों का व्यवस्था पर काम करे।