यूएमआरसी के डीजीएम सिविल अरुण कुमार भट्ट ने कहा, देहरादून की ज्यादातर सड़कों की शत-प्रतिशत क्षमता का दोहन हो चुका है। अब नए विकल्प पर काम करना होगा। नियो मेट्रो इसका समाधान है। यह प्रोजेक्ट केंद्र सरकार के पास विचाराधीन है। दूसरे चरण में नियो मेट्रो फीडर के तौर पर पॉड टैक्सी का प्लान तैयार किया जा रहा है। यूएमआरसी के पीआरओ गोपाल शर्मा ने कहा, दून में ज्यादातर सड़कें 12 मीटर चौड़ी हैं। इसलिए स्काई वॉक या अंडरग्राउंड ट्रांसपोर्ट सिस्टम विकसित करना होगा। शहर की 12 लाख की आबादी के अलावा यहां आने वाले पर्यटकों का भी आकलन करना होगा। मेट्रो महिला सुरक्षा के लिहाज से भी बेहद अहम है।
एसडीसी फाउंडेशन के संस्थापक एवं सामाजिक कार्यकर्ता अनूप नौटियाल ने कहा, शहर ट्रैफिक समस्या से बेहाल है। अर्बन ट्रांसपोर्ट के लिए किसी एक विभाग के जिम्मेदार न होने से समस्या बढ़ी है। पर्यावरणविद डॉ. सौम्या प्रसाद ने आम जनता के लिए पब्लिक ट्रांसपोर्ट की कमी और महंगे किराये का मुद्दा उठाया। ऑटो, ई-रिक्शा की मनमानी पर अंकुश के अलावा उन्होंने बस शेल्टर और भरोसेमंद पब्लिक ट्रांसपोर्ट विकसित करने पर जोर दिया। दून रेजीडेंट्स वेलफेयर एसोसिएशन के अध्यक्ष एवं पार्षद देवेंद्र पाल सिंह मोंटी ने कहा, बेहतर ट्रांसपोर्ट समय की मांग है। लेकिन, इसमें साफ तौर पर राजनीतिक इच्छाशक्ति का अभाव नजर आता है।
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तीन सर्कुलर रूट की प्लानिंग कर रहा परिवहन विभाग
आरटीओ (प्रवर्तन) शैलेश तिवारी ने बताया, देहरादून के मौजूदा सार्वजनिक परिवहन व्यवस्था को बेहतर बनाने के प्रयास किए जा रहे हैं। वर्तमान में करीब 12 लाख की आबादी पर शहर में लगभग 10 लाख वाहन हैं। करीब 170 सिटी बसें, 30 इलेक्ट्रिक बसें, 500 मैजिक, 800 विक्रम, 2500 ऑटो, 4500 ई-रिक्शा का व्यापक बेड़ा है। भविष्य के लिए कुठालगेट-क्लेमेंटाउन, रायपुर-झाझरा और बल्लूपुर-कुआंवाला तक सर्कुलर रूट की प्लानिंग कर रहे हैं। कई मुख्य सड़कों पर आवाजाही बेहतर करने के लिए ई-रिक्शा को प्रतिबंधित किया जा रहा है। दून में 30 सीटर की करीब 350 बसों की जरूरत है। जब तक आती है, मौजूदा सिस्टम को ठीक किया जाना चाहिए।