विशेषज्ञ समिति द्वारा बीते दो फरवरी को समान नागरिक संहिता (UCC) का ड्राफ्ट उत्तराखंड सरकार को सौंपे जाने के बाद रविवार को मुस्लिम संगठनों ने इसका विरोध शुरू कर दिया। देहरादून स्थित जामा मस्जिद में मुस्लिम सेवा संगठन की ओर से आयोजित संवाददाता सम्मेलन में शहर काजी मोहम्मद अहमद कासमी ने कहा कि यूसीसी केवल धर्म विशेष के विरुद्ध है, क्योंकि इसमें मुस्लिम समाज द्वारा दी गई आपत्तियों को दरकिनार किया गया है। ना ही इसमें मुस्लिम समाज द्वारा दिए गए सुझावों को जगह दी गई है। उन्होंने साफ शब्दों में कहा कि हम यूसीसी का कड़ा विरोध करते हैं। संवैधानिक दायरे में रहते हुए इस काले कानून के विरुद्ध लड़ाई लड़ेंगे। इस दौरान, इमाम संगठन के अध्यक्ष मुफ्ती रईस ने कहा कि प्रदेश सरकार द्वारा लाए जाने वाला कानून संविधान के विरुद्ध है। क्योंकि आर्टिकल 25 के तहत हर धर्म को मानने वाले व्यक्ति को अपने धर्म पर चलने की आजादी है।
यूसीसी का विरोध कर रहे संगठन का कहना है कि सर्वप्रथम केंद्र सरकार द्वारा संविधान में संशोधन किया जाए, फिर यूसीसी लागू किया जा सकता है। उन्होंने कहा कि अन्यथा दो कानून आपस में टकराएंगे। मुफ्ती ने कहा कि संविधान के अनुच्छेद 25 राज्य सरकार मानने को बाध्य है। उन्होंने कहा कि जो कानून समस्त धर्म के लिए है, उसमें समस्त धर्म का प्रतिनिधत्वि न होना ही इस कानून को सन्देह पूर्वक बनता है।
मुस्लिम सेवा संगठन के अध्यक्ष नईम कुरैशी ने मीडिया रिपोर्ट का हवाला देते हुए कहा कि यूसीसी प्रावधानों में से चार प्रावधान सीधे मुस्लिम पर्सनल लॉ पर हमला करते हैं जिससे पता चलता है कि यूसीसी लाने का मतलब मुस्लिम लॉ को खत्म करना है। मुस्लिम सेवा संगठन के उपाध्यक्ष आकिब कुरैशी ने कहा कि यूसीसी ड्राफ्टिंग कमिटी में किसी भी धार्मिक धर्मगुरु या धर्म के जानकार को नहीं लिया गया, विशेषकर मुस्लिम धर्म गुरु को सम्मिलित नहीं किया गया। उन्होंने कहा कि ये कानून सब से ज़्यादा मुस्लिम धर्म को प्रभावित करता है, ऐसे में किसी भी मुस्लिम धर्म गुरु को विशेषज्ञ समिति में शामिल ना करना इस कानून को वैधता पर प्रश्न चन्हि खड़ा करता है। उन्होंने कहा कि इसके अलावा, इसमें जोनसार बाबर के क्षेत्र और ट्राइबल को अलग कर दिया है। इससे इसकी एक प्रदेश एक कानून की सार्थकता पर बड़ा प्रश्न है। इस दौरान, खुर्शीद अहमद, हाशिम उमर, मुहम्मद इरशाद आदि भी मौजूद थे।