कोरोना JN.1 वैरिएंट से कितना खतरा? उत्तराखंड के पहाड़ी जिलों में कोविड का असर कम

कोरोना JN.1 वैरिएंट के मामले बढ़ रहे हैं। चिंता की बात है कि नए वैरिएंट के मामले 4 हजार के पार पहुंच गए हैं। डॉक्टरों की बात मानें तो जेएन.1 वैरिएंट फेफड़ों पर सीधा असर करता है। वायरस से बचने को सतर्कता बहुत जरूरी है। उत्तराखंड के पर्वतीय जिलों में कोविड का असर न केवल कम रहा बल्कि वहां कोविड की रिकवरी दर सबसे अधिक रही।

इसके बूते राज्य की आयोग्य प्राप्ति की दर 96.41 फीसदी रही। पर्वतीय जिलों में रुद्रप्रयाग की रिकवरी दर सबसे अधिक 99.21, पौड़ी गढ़वाल की 98.49 व पिथौरागढ़ की 98.25 फीसदी रही। ग्राफिक एरा पर्वतीय विवि के प्रोफेसरों का कोविड को लेकर किया गया शोध अंतरराष्ट्रीय जर्नल कोरोना वायरस में प्रकाशित हुआ है।

ग्राफिक एरा पर्वतीय विवि के शोधकर्ताओं की टीम ने कोविड 19 के स्वास्थ्य बुलेटिन से प्राप्त डेटा के विश्लेषण के बाद कुछ सुझाव दिए हैं, जिससे शोध का उपयोग भविष्य में कोविड जैसी महामारी से निपटने में किया जा सकता है।  शोध में कहा गया है कि कोविड 19 वायरस का प्रसार बढ़ाने में 20 डिग्री सेल्सियस से ऊपर का तापमान, बढ़ी हुई आर्द्रता, उच्च युवी विकिरण भी जिम्मेदार रहा।

मैदानी क्षेत्र में तीव्र धूप पड़ने से लोग धूप के संपर्क से बचते हैं, वहीं अधिक जनसंख्या घनत्व होने से अधिक संक्रामक मामले व मौते हुई।  जबकि पहाड़ी क्षेत्रों में लोग ज्यादा धूप के संपर्क में रहते थे। लोगों को भरपूर विटामिन डी मिला, इसलिए वहां कम संवेदनशील मामले आए।

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