बड़े शहरों की रेस में पिछड़ने से दून में नियो मेट्रो का प्रोजेक्ट खतरे में पड़ गया है। पीएमओ में प्रस्तुतिकरण के बाद भी केंद्र सरकार के मन में प्रोजेक्ट को लेकर कई संदेह हैं जो हर बार दून की फाइल को नीचे कर दे रहे हैं। दरअसल, दिल्ली में करीब 17 शहरों की फाइलें मेट्रो और नियो प्रोजेक्ट के लिए हरी झंडी के इंतजार में हैं। लेकिन, केंद्र सरकार इनमें से क्षेत्रफल और आबादी के हिसाब से बड़े शहरों को प्राथमिकता दे रहा है।
केंद्र सरकार की पहली शंका है कि देहरादून में कम चौड़ी सड़कें नियो के संचालन में बाधा बन सकती है। केंद्र धरातल पर नियो मेट्रो चलाने के पक्ष में है जबकि उत्तराखंड सरकार एलिवेटेड पिलर्स पर नियो चलाने के पक्ष में है।
शंका-2
केंद्र सरकार की दूसरी शंका देहरादून में नियो मेट्रो की जरूरत को लेकर भी है। कई शहरों में घाटे में चल रही मेट्रो के बाद केंद्र सरकार देहरादून में सिर्फ प्रदेश की राजधानी होने के नाते नियो का संचालन नहीं करना चाहती।
शंका-3
केंद्र का मानना है कि नियो और मेट्रो का संचालन वहां के लिए बेहद उपयोगी है, जिस शहर का क्षेत्रफल और आबादी अधिक है। बड़े शहर आबादी के बोझ और सार्वजनिक साधनों की कमी का हवाला देकर आगे निकल रहे हैं।
शंका-4
नियो की तकनीक को लेकर भी केंद्र के मन में संदेह है। इस तकनीक से पहली बार दून में नियाे मेट्रो के संचालन का प्लान है। इस तकनीक पर भारी भरकम बजट खर्च होगा। ऐसे में नई तकनीक की कामयाबी का संदेह भी अवरोध पैदा कर रहा है।
बसों का नेटवर्क कारगर