गुरू पूर्णिमा के अवसर पर टपकेश्वर महादेव मंदिर में ब्रह्मलीन माया गिरी महाराज की समाधि में पूजन एवं ध्वजारोहण कर गुरू को नमन करते हुए गुरू पूर्णिमा को धूमधाम से मनाया गया।
इस अवसर पर दिगम्बर भरत गिरी ने कहा है कि गुरु पूर्णिमा सनातन धर्म संस्कृति है। उन्होंने कहा कि सनातन संस्कृति में आषाढ़ मास की पूर्णिमा को गुरु पूर्णिमा कहते हैं। उन्होंने कहा कि अज्ञान को हटा कर प्रकाश ज्ञान की ओर ले जाने वाले को गुरु कहा जाता हैं।
उन्होंने कहा कि गुरू की कृपा से ईश्वर का साक्षात्कार होता है। उन्होंने कहा कि गुरू की कृपा के बिना कुछ भी सम्भव नहीं है और उन्होंने कहा कि आदिगुरु परमेश्वर शिव दक्षिणामूर्ति रूप में समस्त ऋषि मुनि को शिष्यके रूप शिवज्ञान प्रदान किया था। उनके स्मरण रखते हुए गुरु पूर्णिमा मनाया जाता है। उन्होंने कहा कि गुरु पूर्णिमा उन सभी आध्यात्मिक और अकादमिक गुरुजनों को समर्पित परम्परा है जिन्होंने कर्म योग आधारित व्यक्तित्व विकास और प्रबुद्ध करने और बहुत कम अथवा बिना किसी मौद्रिक खर्चे के अपनी बुद्धिमता को साझा करने के लिए तैयार हों।
इस अवसर पर समाजसेवी एवं महानगर कांग्रेस कमेटी के पूर्व अध्यक्ष लालचन्द शर्मा ने कहा है कि यह पर्व हिन्दू, बौद्ध और जैन अपने आध्यात्मिक शिक्षकों, अधिनायकों के सम्मान और उन्हें अपनी कृतज्ञता दिखाने के रूप में मनाया जाता है। यह पर्व हिन्दू पंचांग के हिन्दू माह आषाढ़ की पूर्णिमा मनाया जाता है।
उन्होंने कहा कि जब एक शिशु जन्म लेकर दुनिया में आता है तो सबसे पहला शब्द जो उसके मुख से निकलता है, वह शब्द मॉं होता है। उन्होंने कहा कि माता न केवल जीवन देती है, बल्कि उसमें संस्कार, शिक्षा और प्रेरणा का बीजारोपण भी करती है। शर्मा ने कहा कि माँ ही बालक बालिका को जीवन की दिशा देती है और उसमें आत्मबल का संचार करती है।
इस अवसर पर सभी ने गुरू पूर्णिमा की बधाई व शुभकामनायें दी। इस अवसर पर दिगंबर भरत गिरी, अजीत गिरी, महाराज, समाजसेवी लालचंद शर्मा, डी के शर्मा, पंडित कमल भट्ट, पंडित घनश्याम शास्त्री और सभी भक्तजन उपस्थित रहे