यह एक प्रसिद्ध मनोरंजक पारंपरिक खेल है। यह मेरा प्रिय खेल है। मैं इसे आज भी 68 वर्ष की उम्र में भी खेलता हूं और खिलाता रहा हूं। इससे शरीर स्वस्थ और फुर्तीला रहता है। यह खासकर जोहार मुनस्यार का स्थानीय पारंपरिक खेल है। इसे स्थानीय भाषा में घुन-नी-मार यानी इसमें घुटना नही मारना होता है। इसे गोल घेरे में खेला जाता है। यह खेल उत्तराखंड के हिमालयी क्षेत्र के लगभग सभी हिस्सों में प्रसिद्ध है। सबसे मजे की बात यह है कि इसमें किसी तरह की खेल सामग्री की आवश्यकता नहीं होती है। इसे हर वर्ग के लोग आसानी से गोलघेरे में खेल सकते है।
इस खेल को पहली बार टूर्नामेंट के रूप में, दो टीमों के बीच 1998 में जोहार क्लब, मुनस्यारी के 43 वें वार्षिक खेलोत्सव में ओ एन जी सी, मुंबई द्वारा थ्री ईयर्स रोलिंग ट्रॉफी के साथ मुर्गा झपट- 98 के रूप में प्रायोजित की गई थी। जिसे 6 जून, 1998 को मुनस्यारी के प्राकृतिक स्टेडियम में पहली बार प्रायोजित कर एक नया इतिहास रचा गया था। इसमें मुख्य भूमिका श्री ललित सिंह मर्तोलिया, मुख्य अभियंता ओ एन जी सी, मुंबई की रही। इसके बाद इस खेल को लगातार लगभग 12 वर्षों तक श्री ललित सिंह मर्तोलिया जी ने इसे भी प्रायोजित किया। मर्तोलिया जी, न सिर्फ इसे खेलते व खिलाते है परंतु इस खेल के बारे में एक अच्छी जानकारी रखते है। मर्तोलिया जी, इसे 5 एस यानी स्ट्रेंथ, स्टैमिना, स्टाइल, स्पीड एवम् स्ट्रेटजी का खेल बताते है। यह अच्छी बात है कि इस मुर्गा झपट को राज्य स्तरीय खेलों में शामिल किया गया है और खेला जाने वाला है।