दून पुस्तकालय एवं शोध केंद्र की ओर से जेंडर और समाजीकरण विषय पर संस्थान के सभागार में एक विचार गोष्ठी का आयोजन किया गया। सामाजिक कार्यकर्ती दीपा कौशलम की वार्ता श्रृंखला के तहत इस महत्वपूर्ण गोष्ठीे में भारतीय समाज में लिंग और समाजीकरण के मुद्दों पर जागरूकता पर सार्थक बातचीत की गयी। इस बातचीत में प्रोफेसर रीना उनियाल तिवारी वर्तमान में डीएवी कॉलेज में एसोसिएट प्रोफेसर, जीत बहादुर ,एडवोकेट चन्द्रा,माधुरी दानू और नाहिद परवीन ने भागीदारी की।
बातचीत में वक्ताओं ने कहा कि जेंडर एवं समाजीकरण का एक-दूसरे से घनिष्ठ संबंध है। समाजीकरण एक सतत प्रक्रिया है जो सभी को सामाजिक पहचान के प्रासंगिक ढांचे के भीतर रखने के लिए नियम, भूमिकाएं और जिम्मेदारियां निर्धारित करती है। वक्ताओं का मानना था कि यह उन लोगों को सामाजिक नियमों और विशेषाधिकारों के अनुसार दंडित भी करता है, जो इन निर्धारित भूमिकाओं के खिलाफ आवाज उठाते हैं और लिंग आधारित ढांचे के अनुरूप होने से इनकार करते हैं। परिवार, धार्मिक और शैक्षणिक संस्थान, कानूनी प्रणाली, मीडिया और राजनीति जैसे विभिन्न हितधारक इन लैंगिक नियमों, भूमिकाओं और जिम्मेदारियों पर फिर से जोर देने में महत्वपूर्ण और मजबूत भूमिका निभाते हैं।
इस सामाजिक मुददों वपर आधारित सत्र को विभिन्न हितधारक एजेंसियों के प्रतिनिधियों द्वारा संचालित किया गया इन्होनें अपने अनुभव और अंदरूनी कहानियाँ से इसे साझा किया। सही मायने में इनके अनुभव और आवाज साबित करती हैं कि कैसे हितधारक एजेंसियां समाज में अपनी भूमिका का निर्वाहन करती हैं। उन्होंने अपने अनुभव से यह भी साझा किया कि उन्होंने अपने संस्थानों में लैंगिक रूढ़िवादिता की इस चुनौती को को कैसे दूर किया तथा किस तरह सामाजिक परिवर्तन लाने का प्रयास किया।
संचालक, जीत बहादुर बुंराश ने सामाजिक कार्य में स्नातकोत्तर किया है। हरबर्टपुर क्रिश्चियन अस्पताल के बुरांस प्रोजेक्ट में वे कार्यक्रम समन्वयक के रूप में कार्यरत हैं । उनके पास मानसिक स्वास्थ्य के मुद्दों पर ग्रामीण और शहरी समुदायों के साथ काम करने का 19 साल का अनुभव है। वह समुदायों के मानसिक और सामाजिक कल्याण के लिए जागरूकता पैदा करने और हितधारकों को शामिल करके यमुना घाटी में 40 सदस्यों की एक टीम का नेतृत्व कर रहे हैं।
प्रोफेसर रीना उनियाल तिवारी वर्तमान में डीएवी कॉलेज देहरादून में एसोसिएट प्रोफेसर के तौर पर अध्यापन कार्य कर रही हैं। वह पीएच.डी. हैं। शिक्षा में और शिक्षक-प्रशिक्षक के रूप में उन्हें काम करने का समृद्ध अनुभव है। उन्होंने राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय पत्रिकाओं में 22 से अधिक शोधपत्र प्रकाशित किए हैं। उन्हें 2022 में सर्वश्रेष्ठ शिक्षण के लिए एशियाई शिक्षा पुरस्कार से सम्मानित भी किया गया है।
नाहिद परवीन समाजशास्त्र में मास्टर डिग्री धारक है। जीवन के कई गंभीर उतार-चढ़ाव देखते हुए अपने निजी जीवन के साथ महिला समाख्या परियोजना से जुड़े उनके कई वर्षों के अनुभव हैं। इन अनुभवों ने उन्हें बेहद निडर बनाया है और आश्चर्यपूर्ण जीवन कौशल सिखलाया है। वे इसके अलावा, देहरादून के बलूनी क्लासेज में लाइब्रेरियन के तौर पर काम करते हैं।
अधिवक्ता चंद्रकला, प्रखर लेखन कौशल वाली एक सामाजिक और राजनीतिक कार्यकर्ता हैं, वह सक्रियता में अपने 32 वर्षों के अनुभव को बहुत महत्व देती हैं। वह जन आंदोलनों में बढ़-चढ़ कर हिस्सेदारी करती है, और जन अधिकारों के बारे में जागरूकता बढ़ाने का काम करती हैं। वह देहरादून की जिला अदालत में एक प्रैक्टिसिंग वकील हैं। उनके कई लेख उत्तरा, समयांतर पत्रिकाओं तथा डिजिटल पत्रिका ‘काफल ट्री’ में अक्सर दिखाई देते हैं।
उल्लेखनीय है कि सामाजिक कार्यकर्ती के तौर पर दीपा कौशलम एक सलाहकार हैं और लिंग परिप्रेक्ष्य के साथ सामुदायिक गतिशीलता, संस्था निर्माण और सुदृढ़ीकरण में काम कर रही हैं। उन्हें नेशनल फाउंडेशन ऑफ इंडिया से सामुदायिक कार्य के लिए आइकन ऑफ करेज अवार्ड और सी. सुब्रमण्यम अवार्ड मिले हुए हैं।
इस बातचीत पर सभागार में उपस्थित लोगों ने इस विषय से जुड़े अनेक सवाल-जबाब भी किये। इस अवसर पर सभागार में निकोलस हॉफलैण्ड, सुंदर एस बिष्ट, राकेश कुमार सहित अनेक सामाजिक कार्यकर्ता, बुद्विजीवी, साहित्यकार, साहित्य प्रेमी, पुस्तकालय के सदस्य तथा युवा पाठक उपस्थित रहे।